सरदारशहर: ना फोटो खिंचवाए, ना मंच लगाए – सूरज नाहटा ने कर दिखाया असली काम”

In the heart of Sardarshahar, local social worker Suraj Nahata brings warmth and dignity to abandoned elderly mothers. Through heartfelt service and community support, this initiative proves that true humanity still exists.

भारत खबर, सरदारशहर। कड़ाके की सर्दी हो या तपती दोपहर, समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बिना शोर मचाए चुपचाप अपने काम से दूसरों की जिंदगी में गर्माहट भर देते हैं। आज सरदारशहर में कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला जब नगर के समाजसेवी सूरज नाहटा ने अपने घर में एक सादा मगर दिल को छू जाने वाला कार्यक्रम रखा।

इस कार्यक्रम में कोई बड़ी सजावट नहीं थी, ना माइक ना मंच। बस थी तो वो नीयत, जो बुजुर्ग माताओं के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी थी।
कार्यक्रम के तहत उन बुज़ुर्ग, लाचार और बेसहारा माताओं को गर्म कपड़े और ज़रूरी सामग्री दी गई, जो ना तो वृद्धाश्रम जा सकती हैं और ना ही किसी से मदद मांग सकती हैं।

ये पूरा अभियान मानव मंदिर मिशन के तहत चल रहे “महासती मंजुला श्री मातृ सेवा प्रकल्प” का हिस्सा है। गुरुदेव आचार्य रूपचंद्र जी महाराज की सोच और मार्गदर्शन में चल रहे इस प्रकल्प का मकसद है – माताओं को वृद्धाश्रम जैसी सुविधाएं उनके घर की चौखट पर पहुंचाना।

आज इसी सेवा के तहत प्रकल्प के प्रबंधक वेदांत दुबे के नेतृत्व में एक टीम सरदारशहर पहुंची जिसमें जितेंद्र सिंह, मनोज तिवारी, प्रकाश, श्रीमती निशा, मानक सिंघीं और विमल जम्मड़ शामिल थे।
इन सभी ने वार्डों में घूम-घूमकर उन माताओं से मुलाकात की, उनका हालचाल पूछा और उन्हें सर्दी से राहत देने वाले सामान बांटे।

कार्यक्रम की खास बात यह रही कि इसकी पूरी व्यवस्था अमेरिका में रहने वाले कनक गोलिया और श्रीमती प्रभा गोलिया के सहयोग से की गई। विदेश में रहते हुए भी इनका दिल सरदारशहर के बुजुर्गों के लिए धड़कता है।

सूरज नाहटा का कहना है,
“मैं पिछले कई सालों से छात्रावासों, गरीब बस्तियों और गांवों में जाकर ऐसे लोगों तक गर्म कपड़े पहुंचाता हूं जिन्हें ज़रूरत है। जब कोई बुजुर्ग मां कंबल ओढ़कर मुस्कुराती है, तो लगता है जैसे ठंड पर जीत मिल गई हो।”

ऐसा कोई पहला मौका नहीं है। सूरज नाहटा हर साल ठंड में अपने प्रयासों से दर्जनों बुजुर्गों तक राहत पहुंचाते हैं। बिना किसी प्रचार के, बिना किसी इनाम के – सिर्फ मानवीय भावना के साथ।

सरदारशहर जैसे कस्बे में जहां रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लोग अपनी परेशानियों में उलझे रहते हैं, वहीं कुछ चेहरे ऐसे भी हैं जो दूसरों की तकलीफ बांटकर खुद को संतुष्ट करते हैं।