200 फिट ऊंचे धोरे पर ऊंट से खेती!
साधूणा गांव के रेतीले धोरे पर एक बार फिर ऊंट से खेती हो रही हैं। जहां एक तरफ आधुनिक खेती के उपकरणों और टैक्टरों ने गावों में खेती करने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। वही दूसरी और राजस्थान के कुछ गांवों के खेत ऐसे है। जहां 200 फिट से भी ऊंचे टीले हैं। वहां खेती के लिए, आज भी ऊंट ही किसानों की असली ताकत है।
यहां बरसात के बाद जैसे ही खेतों में नमी आती हैं। किसान मोठ, बाजार और ग्वार जैसी फसलों की बिजाई के लिए ट्रैक्टर लेकर खेत जाते है। लेकिन रेत के उच्चें टीलों पर ट्रैक्टर बिजाई करने में बेबस ही साबित होते हैं। ऐसे में किसानों के पास सिर्फ ही रास्ता – ऊंट।
ऊंट बना खेती का साथी, ट्रैक्टर है बेबस!
राजस्थान के कुछ गांवों की भौगोलिक बनावट कुछ खास अलग तरीके से है। जैसे साधूणा गांव “सेंगाल धोरा” श्रृंखला में आता है, जहां की ऊंचाई करीब 200 फीट तक जाती है। इन रेत के टीलों में में तीखा धोरा, चोड़े धोरा और कोयल धोरा जैसे कई नामों से जाने वाले धोरे स्थान है। जहां आज भी ट्रैक्टर से खेती करना नामुमकिन नहीं है। यहां आज भी ऊंट से खेती करते हैं। ऊंट से हल चलाकर किसान परिवार बिजाई करते हैं।
स्थानीय किसान रवि कुमार बताते है:
ट्रैक्टर इन टीलों पर चल ही नहीं पाता। ऐसे में ऊंट से ही मोठ और बाजरा की बिजाई करनी पड़ती हैं।
राजस्थान की संस्कृति से जुड़ा ऊंट , अब भी निभा रहा अहम रोल
राजस्थान की मरुस्थलीय संस्कृति में ऊंट सिर्फ एक जानवर नहीं हैं। बल्कि रेगिस्तान में जीवनशैली का हिस्सा भी रहा है। चाहे समान ढोना हो, या खेत जोतना – ऊंट हमेशा ग्रामीणों की मदद करता आया है। इसलिए आज भी गांव के लोगों की पहली पसंद ऊंट ही है।
आज इतने आधुनिक समय में भी इतनी मशीनों के बाद भी ऊंचे टीले पर बुवाई करना मुमकिन नहीं है। ऐसे में ऊंट से खेती न सिर्फ विकल हैं। बल्कि एक भरोसेमंद परंपरा भी है, जो अब भी जारी हैं।
रेगिस्तान में किराए पर ऊंट, लेकिन काम भरपूर
आज के समय में भले ही ऊंट की जगह ट्रैक्टर और मशीनें ले चुकी हो। लेकिन राजस्थान के बहुत सारे गांवों में ऊंट का महत्व आज भी उतना ही है, जितना पहले था। गांवों में जिन किसानों के पास ऊंट नहीं हैं, वे किराए पर ऊंट लेकर ऊंट से खेती करते हैं।
प्रति बीघा बिजाई का किराया लगभग 400-500 रुपए तक लिया जा रहा है । जबकि ट्रैक्टर वाले एक घंटे का 1000 से 1200 तक लेते है।
राजस्थान के कुछ किसानों से बात की तो बताया, की ऊंट से जो बुवाई होती हैं। उसका उगाव बेहतर होता हैं। क्योंकि ऊंट का हल धरती को उतना ही तोड़ता है, जितना जरूरी हो। मशीनों की तुलना में जमीन में नमी ज्यादा दिन बनी रहती है।
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