हरियाणा की जमीन संकट में: मिट्टी की सेहत पर खतरा, 80% खेतों में जैविक कार्बन की भारी कमी!
हरियाणा जो देश को सालाना 20 करोड़ टन से ज्यादा अनाज देता है, अब खुद मिट्टी की सेहत के गंभीर संकट से जूझ रहा है। हाल ही में कृषि विभाग द्वारा तैयार की गई सॉयल हेल्थ कार्ड रिपोर्ट ने न सिर्फ सरकार बल्कि किसानों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।
55 लाख सैंपलों की जांच में खुलासा – धरती बंजर होने की ओर
पिछले 4 सालों में हरियाणा के हर जिले से 55 लाख से अधिक मिट्टी के सैंपल लिए गए, और रिपोर्ट के मुताबिक:
- 80.24% सैंपलों में जैविक कार्बन की कमी पाई गई।
- 19.01% सैंपलों में यह कमी अत्यधिक थी।
- सिर्फ 1.33% सैंपलों में जैविक कार्बन 1% से अधिक था, जो प्राकृतिक खेती के लिए ज़रूरी है।
जैविक कार्बन स्तर वर्गीकरण:
श्रेणी | प्रतिशत स्तर |
---|---|
बहुत कम | 0 – 0.25% |
कम | 0.25 – 0.50% |
मध्यम | 0.50 – 0.75% |
अधिक | 0.75 – 1.00% |
बहुत अधिक | 1.00% से ऊपर |
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि जैविक कार्बन 0.75% से नीचे चला जाए, तो भूमि की उर्वरता तेजी से गिरने लगती है। यही वजह है कि राज्य की बड़ी मात्रा में कृषि भूमि अब बंजर होने की दिशा में बढ़ रही है।
हरियाणा के वो जिले जहां हालात सबसे खराब
जिला | जैविक कार्बन की कमी (%) |
---|---|
पलवल | 99.13% |
रेवाड़ी | 99.08% |
जींद | 98.90% |
फरीदाबाद | 98.13% |
नूंह | 96.11% |
हिसार | 95.49% |
यमुनानगर | 93.85% |
सिरसा | 90.85% |
महेंद्रगढ़ | 90.32% |

पोषक तत्वों की भारी कमी भी बनी चिंता का कारण
पोषक तत्व | कमी वाले सैंपल (%) |
---|---|
आयरन (Iron) | 27.22% |
कॉपर (Copper) | 20.88% |
ज़िंक (Zinc) | 23.80% |
फास्फोरस | 17.36% |
पोटैशियम | 22.86% |
सल्फर | 7.05% |
मैंगनीज | 17.34% |
इन पोषक तत्वों की कमी से न केवल फसलों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है बल्कि मानव और पशु स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। सब्जियों में अत्यधिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग, चारे पर रसायनों का छिड़काव – ये सब अब आम बात हो गई है।
ये हालात क्यों बने?
फसल चक्र में विविधता की कमी:
किसान एक ही तरह की फसलें बार-बार उगा रहे हैं, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों की विविधता खत्म हो रही है।
गोबर और हरी खाद का प्रयोग घटा:
पारंपरिक देसी खाद और हरी खाद का प्रयोग अब लगभग समाप्त हो चुका है।
फसल अवशेष जलाना:
खेतों में पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद जैविक गुण नष्ट हो जाते हैं।
यूरिया और रसायनिक खाद का अत्यधिक उपयोग:
ये केवल तात्कालिक फसल के लिए काम करते हैं, लेकिन लंबे समय में जमीन को खराब करते हैं।
क्या है समाधान?
गोबर व हरी खाद का उपयोग बढ़ाएं:
गोबर, मूंग, लोबिया, कैंचा जैसी फसलों को काटकर मिट्टी में मिलाना या खाद बनाकर उपयोग करना जरूरी है।
फसल विविधिकरण अपनाएं:
धान-गेहूं के चक्र से बाहर निकलकर दालें, तिलहन, और दूसरी वैकल्पिक फसलें अपनाएं।
जमीन को आराम दें:
एक फसल के बाद खेत को कुछ समय खाली छोड़ें, ताकि मिट्टी खुद को रीचार्ज कर सके।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें:
जहां संभव हो, रसायनिक खाद से दूरी बनाकर जैविक तरीकों का पालन किया जाए।
सरकार की चुनौती: कैसे बढ़ेगी प्राकृतिक खेती?
राज्य सरकार ने 1 लाख एकड़ भूमि को प्राकृतिक खेती के लिए तैयार करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन रिपोर्ट में साफ है कि 98.67% भूमि इस लायक नहीं बची है क्योंकि इन सैंपलों में जैविक कार्बन 1% से कम है। इस स्थिति को सुधारने के लिए तत्काल और कठोर कदम उठाने होंगे।
निष्कर्ष: अब नहीं चेते तो देर हो जाएगी
हरियाणा की मिट्टी की बिगड़ती हालत केवल कृषि उत्पादन तक सीमित नहीं है, यह संपूर्ण खाद्य श्रृंखला, पशुपालन और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। समय रहते जैविक खेती और टिकाऊ कृषि उपायों को अपनाना बेहद जरूरी है।
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FAQs: हरियाणा कृषि भूमि और जैविक कार्बन संकट से जुड़े सवाल
हरियाणा में मिट्टी की जांच से क्या पता चला है?
जवाब:
हरियाणा कृषि विभाग द्वारा 55 लाख मिट्टी सैंपलों की जांच में यह सामने आया है कि करीब 80.24% खेतों में जैविक कार्बन की कमी है। इससे मिट्टी की उर्वरता घट रही है और जमीन बंजर होने की ओर बढ़ रही है।
जैविक कार्बन क्या होता है और यह क्यों जरूरी है?
जवाब:
जैविक कार्बन (Organic Carbon) मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों का मुख्य तत्व होता है। यह सभी पोषक तत्वों को मिट्टी में संतुलित बनाए रखता है और फसल की उपज बढ़ाने में मदद करता है। इसकी कमी से भूमि की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता दोनों प्रभावित होती हैं।
हरियाणा के किन जिलों में मिट्टी की हालत सबसे खराब है?
जवाब:
रिपोर्ट के अनुसार पलवल (99.13%), रेवाड़ी (99.08%), और जींद (98.90%) जैसे जिलों में सबसे अधिक जैविक कार्बन की कमी पाई गई है।
हरियाणा की जमीन प्राकृतिक खेती के लिए क्यों उपयुक्त नहीं रह गई?
जवाब:
प्राकृतिक खेती के लिए मिट्टी में कम से कम 1% जैविक कार्बन होना जरूरी है। लेकिन हरियाणा के 98.67% सैंपलों में जैविक कार्बन 1% से कम पाया गया है, जिससे यह जमीन प्राकृतिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं रही।
फसल चक्र में बदलाव क्यों जरूरी है?
जवाब:
बार-बार एक ही फसल उगाने से मिट्टी में कुछ खास पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। फसल चक्र में विविधता से मिट्टी को आराम और संतुलन मिलता है, जिससे उसकी उर्वरता बनी रहती है।
मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए किसान क्या करें?
जवाब:
- फसल कटाई के बाद खेत को कुछ समय के लिए खाली छोड़ें
- गोबर और हरी खाद (जैसे मूंग, लोबिया) का प्रयोग करें
- फसल अवशेष जलाने की बजाय खाद बनाएं
- फसल विविधिकरण अपनाएं
जैविक खाद डालने के क्या फायदे हैं?
जवाब:
जैविक खाद मिट्टी की संरचना को सुधारती है, उसमें जरूरी पोषक तत्व बढ़ाती है, और पानी धारण क्षमता को मजबूत करती है। इससे फसलों की क्वालिटी और उत्पादन दोनों में सुधार आता है।
क्या मिट्टी की खराब हालत का असर इंसानों और पशुओं पर भी पड़ता है?
हाँ, पोषक तत्वों की कमी वाली फसलें खाने से हीमोग्लोबिन, आयरन, जिंक जैसी चीज़ों की कमी इंसानों और पशुओं में पाई जा रही है। इससे बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।