भूमिका:
भारत में चेक बाउंस से जुड़े केस आम बात हैं। हर साल हजारों लोग इस वजह से कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते हैं। लेकिन हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने इस पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि अगर किसी व्यक्ति या कंपनी का बैंक खाता सरकार द्वारा फ्रीज कर दिया गया हो, तो उस स्थिति में चेक बाउंस केस में राहत मिल सकती है।
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा की एकल पीठ ने की। कोर्ट ने कहा कि:
“जब कोई खाता सरकार या विभाग द्वारा सीज कर दिया गया हो, तो यह नहीं माना जा सकता कि उस समय चेक जारी करने वाला व्यक्ति (ड्रॉअर) अपने खाते को मेंटेन कर रहा था।”
यानी अगर खाता फ्रीज है, तो चेक बाउंस को लेकर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक मामला नहीं बनता।
एनआई एक्ट की धारा 138 क्या है?
Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 के अनुसार, अगर कोई चेक इस कारण बाउंस हो जाता है कि खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं है, तो वह एक आपराधिक अपराध माना जाता है। लेकिन इसकी एक शर्त है — खाता ड्रॉअर द्वारा मेंटेन किया जा रहा हो।
कोर्ट ने किन तर्कों पर फैसला सुनाया?
- याचिकाकर्ता का खाता CGST विभाग द्वारा फ्रीज कर दिया गया था।
- बैंक मेमो में भले ही “अपर्याप्त धनराशि” का जिक्र हो, लेकिन असल में खाता पहले से सीज था।
- जब खाता फ्रीज हो, तो न तो चेक जारी करने वाला खाता चला सकता है, और न ही बैंक को कोई निर्देश दे सकता है।
- इसलिए ऐसे मामले में धारा 138 की आवश्यक शर्तें पूरी नहीं होतीं।
पूरा मामला क्या था?
- पक्ष: याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच लंबे समय से व्यापारिक संबंध थे।
- सौदा: नवंबर-दिसंबर 2023 के बीच TMT बार्स की खरीद को लेकर ₹2,40,000 के दो चेक दिए गए।
- तारीखें: एक चेक 10 नवंबर और दूसरा 11 दिसंबर 2023 का था।
- शर्त: आपसी सहमति थी कि चेक को बिना पूर्व सूचना बैंक में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा।
- बाधा: याचिकाकर्ता को खाता फ्रीज होने की जानकारी चेक सौंपने के बाद मिली।
- प्रतिक्रिया: जानकारी मिलते ही उन्होंने रिस्पॉन्डेंट को सूचित कर दिया।
कोर्ट का अंतिम निर्णय:
हाईकोर्ट ने माना कि चूंकि याचिकाकर्ता का खाता सरकार द्वारा सीज किया गया था, इसलिए वह उसे संचालित नहीं कर सकता था। ऐसे में चेक बाउंस केस में राहत दी जाती है।
निचली अदालत द्वारा जारी किया गया समन आदेश त्रुटिपूर्ण था और उसे रद्द कर दिया गया।
इस फैसले का महत्व क्या है?
यह फैसला उन हज़ारों लोगों के लिए एक राहत बन सकता है जिनके खाते किसी सरकारी विभाग (जैसे CGST, IT विभाग) द्वारा सीज किए गए हैं और जिनके खिलाफ चेक बाउंस के केस चल रहे हैं। यह स्पष्ट करता है कि:
जब खाता ड्रॉअर के नियंत्रण में ही नहीं है,
तब चेक बाउंस के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
क्या सीख मिलती है इस फैसले से?
- लेनदेन में पारदर्शिता रखें।
- अगर खाता फ्रीज हो जाए, तो तत्काल संबंधित पक्ष को सूचना दें।
- लिखित में शर्तें तय करना हमेशा सुरक्षित होता है।
- कानून की बारीकियों को समझना जरूरी है, विशेषकर चेक जैसे संवेदनशील दस्तावेजों को लेकर।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि चेक बाउंस केस में राहत तब मिल सकती है जब ड्रॉअर का खाता उसके नियंत्रण में नहीं हो। यह न्यायिक दृष्टिकोण देशभर में चल रहे ऐसे हजारों मामलों की दिशा बदल सकता है और मासूम लोगों को फालतू की कानूनी परेशानियों से बचा सकता है।
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