“क्या राजस्थान के राजा कायर थे? हनुमान बेनीवाल के बयान ने खोले इतिहास के ज़ख्म – करणी सेना का फूटा ग़ुस्सा!”
राजस्थान की राजनीति इन दिनों एक बयान को लेकर गर्माई हुई है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के नेता हनुमान बेनीवाल ने एक ऐसा बयान दे दिया है जिसने राजस्थान के ऐतिहासिक गौरव को लेकर बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि जब मुगलों के समय युद्ध की स्थिति बनी, तो राजस्थान के कई राजाओं ने मुगलों से युद्ध करने के बजाय अपनी बहन-बेटियों की शादी मुगलों से कर दी। इस बयान के बाद राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई।
बयान की पृष्ठभूमि:
हनुमान बेनीवाल ने दावा किया कि यह सब बातें इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, और उन्होंने कोई मनगढ़ंत तथ्य नहीं रखे। उनके अनुसार, मुगल शासनकाल में कई राजाओं ने अपनी बेटियों की शादी मुगल बादशाहों से इसलिए की क्योंकि वे युद्ध नहीं लड़ना चाहते थे। उन्होंने हरकाबाई (जिसे जोधाबाई भी कहा जाता है) की अकबर से हुई शादी, और अन्य राजाओं द्वारा मुगलों से संबंध स्थापित करने की घटनाओं का हवाला दिया।
उदाहरण के लिए:
- हरकाबाई और अकबर की शादी: 1562 में जयपुर के राजा भारमल ने अपनी बेटी की शादी अकबर से की।
- जहांगीर और मानसिंह की बेटी: 1587 में अकबर के बेटे जहांगीर से एक राजकुमारी की शादी करवाई गई।
- बीकानेर के राजा का समर्पण: 1570 में बीकानेर के राजा ने अकबर की अधीनता स्वीकार की और अपनी बेटी का विवाह कराया।
हनुमान बेनीवाल ने यह भी कहा कि अगर इन बातों पर आपत्ति है, तो उन्हें स्कूली किताबों से हटाया जाए, क्योंकि यह सभी तथ्य दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में दर्ज हैं।
करणी सेना का आक्रोश:
हनुमान बेनीवाल के इस बयान पर सबसे तीव्र प्रतिक्रिया करणी सेना की ओर से आई। करणी सेना ने इसे राजस्थान के इतिहास और गौरव पर सीधा हमला बताया। करणी सेना के अनुसार, राजस्थान का इतिहास केवल समझौतों का नहीं, बल्कि बलिदान, शौर्य और युद्धों का है।करणी सेना का कहना है कि कुछ अपवाद घटनाओं को पूरे इतिहास का प्रतिनिधि बनाना राजस्थान के राजपूताने की वीरता को अपमानित करने जैसा है। उनके अनुसार, राणा सांगा, महाराणा प्रताप, राजा सूरजमल जैसे योद्धाओं का इतिहास किसी भी अन्य प्रदेश से कम नहीं है।
क्या हनुमान बेनीवाल का बयान पूरी तरह गलत है?
यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। हनुमान बेनीवाल ने इतिहास में दर्ज घटनाओं का हवाला जरूर दिया, लेकिन उनका सामान्यीकरण विवाद को जन्म देता है। इतिहास में यह सही है कि कुछ राजाओं ने राजनीतिक समझौतों के तहत विवाह संबंध बनाए, लेकिन वहीं दूसरी ओर, बहुत से राजाओं ने मुगलों से सीधे युद्ध भी लड़े और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए।
- राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ खानवा का युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुए।
- महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा और जीवनभर मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
- सूरजमल जैसे राजाओं ने मुगल दरबारों की नींव तक हिला दी।
यह कहना कि “राजस्थान ने कभी युद्ध नहीं लड़ा”, पूरी तरह से ऐतिहासिक रूप से उचित नहीं कहा जा सकता। हनुमान बेनीवाल के बयान का यह हिस्सा सबसे अधिक विवादास्पद है और इसी पर सबसे अधिक आलोचना हुई।
समर्थकों की दलील:
हनुमान बेनीवाल के समर्थक कहते हैं कि अगर इतिहास की ये बातें गलत हैं, तो उन्हें स्कूल की किताबों से हटाया जाए। वे यह भी कहते हैं कि हनुमान बेनीवाल ने जिन घटनाओं का हवाला दिया, वे किताबों में दर्ज हैं और उन्हें उजागर करना कोई अपराध नहीं है।
क्या यह इतिहास बनाम राजनीति है?
यह विवाद केवल इतिहास के तथ्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। इतिहास के चयनात्मक प्रस्तुतीकरण से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश हो रही है। एक तरफ बेनीवाल खुद को बेबाक और सत्य बोलने वाला नेता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर करणी सेना इसे राजपूत गौरव का अपमान बता रही है।
निष्कर्ष:
हनुमान बेनीवाल ने जो कहा, उसमें कुछ ऐतिहासिक तथ्य अवश्य हैं, लेकिन उनका सामान्यीकरण करना और पूरे राजस्थान को ‘कायर’ कह देना अनुचित है। राजस्थान का इतिहास बलिदानों और शौर्य की मिसालों से भरा हुआ है, और उन वीर योद्धाओं की गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं।
राजनीति में बयानबाज़ी आम बात है, लेकिन जब बात इतिहास की हो, तो संयम, तथ्यपरकता और सम्मान ज़रूरी है। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर या अधूरा प्रस्तुत करके सस्ती राजनीति करना किसी भी नेता को शोभा नहीं देता।
आपकी राय?
क्या हनुमान बेनीवाल का बयान सही था या उन्होंने राजस्थान के गौरव को ठेस पहुंचाई? क्या करणी सेना की प्रतिक्रिया जायज है या यह भी राजनीति से प्रेरित है? नीचे कमेंट कर के अपनी राय ज़रूर दें।